सोना नहीं चांदी नहीं आधार तो मिला…
सोना नहीं चांदी नहीं आधार तो मिला...
हम बने तुम बने एक दूजे के लिए
तू कौन, मैं कौन, हम आपके हैं कौन
तू विकास मैं आधार
तेरे बिना मैं नहीं मेरे बिना तू नहीं हमजोली...
हम बने तुम बने एक दूजे के लिए....
गाते-गुनगुनाते विकास और आधार में बहस होने लगती है। वहीं मुर्गी और अंडे वाली। विकास कहता है मैं पहले आया। आधार बोलता है, ‘’अरे रहने दे... मेरे बिना तो तू बेसलेस है। मैं अगर तुझसे अपना लिंक तोड़ लूं तो तू तो अकाउंटलेस हो जाएगा। तेरा तो मोबाईल भी काम नहीं करेगा। फिर तू बैठे रहियो कटोरा ले कर।
विकास रूआंसा हो कर बोलता है- तू ज्यादा बन मत मैं अपने पापा से तेरी शिकायत करूंगा? पापा मेरी बात जरूर सुनेगे। तुझे तो पापा ने गोद लिया है। मुझे तो उन्होंने अपने खून-पसीने से पैदा किया है। तू भूल गया कैसे मेरे नाम पर पापा और चाचा ने पूरे देश में माहौल बनाया था। तब मैं तो गुजरात जितना छोटा बच्चा था। उस समय पापा तो तुझे पसंद भी नहीं करते थे। तुझे खतरा बताते थे।
आधार तुनक कर बोला- अरे जा... तू, आया बड़ा सगा वाला। तुझे तो पापा ने कब का साइड में रख कर दिया है। तु तो बस एक जुमला है। काम की चीज तो मैं हूं, मैं। तुझे पाने के लिए कितने लोग लाईन में लगे बता ना बता। और मुझसे जुड़ने के लिए देख लोगों में कैसी हाय-तौबा मची हुई है। लोग मरे जा रहे हैं। आज लोगों के जुबान पर एक ही नाम है, मेरा नाम है, ‘आधार’। जिनके पास आधार नहीं वे निराधार है। उनकी कोई पहचान नहीं है। बुढ़े हो, जवान हो या हो बच्चे, बिना आधार के हैं ये सब अधकच्चे।
विकास मामले की गंभीरता को समझते हुए थोड़ा गंभीर हो जाता है। उसे भी यह अहसास होता है कि आज-कल उसकी किस्मत में थोड़ी कड़की आई हुई है। तभी उसे कुछ याद आता है। अपने चेहरे पर अनुभवरूपी भाव लाकर बोलता है- ‘क्यों इतराते हो इतना, माना वक्त नहीं है अभी अपना। फिर भी सुनो सुनाता हूं एक किस्सा, इतिहास गवाह है, कौन कैसे अपने ही जुमले में रह गया पीसा। एक दौर था जब नसबंदी के भी थे बहुत चर्चें । उसकी भी दफ्तर-दफ्तर में लगा करते थे पर्चें। बड़े-बड़े बाबू लगे थे जनता की नसबंदी करवाने में। तब भी बच्चों और बुढ़ों का न रखा ख्याल था, कुछ आज की तरह ही तब का भी हाल था। जनता थी बेबस राशन-पानी को, इसका ध्यान था कहां राजरानी को। वह इस गुमां में थी कि कर रही है भला देश का, देशवासियों का जीना मुहाल कर। काला दौर वो भी बीता आखिरकार हार कर। देख रहा हूं बढ़ रहे हैं बड़े तेवर तुम्हारे भी। सुना है कि अब किसानों को बीज भी नहीं मिलेगा बिना तुम्हारे। अच्छा है, अच्छा है। तुम यूं ही तरक्की करते रहो। पियुष काका को भी तुम लगते सच्चे हो। तुम्हारी वजह से पता चला है कि लाखों खाते फर्जी थे। अब तो मिलॉड ने भी तुम्हारी मान ली है, तुम्हारी अनिवार्यता को खारीज करने वाली याचिका को खारीज कर ड़ाली है। मोबाइल, बैंक बैलेंस, घर-संपत्ति सबकी तुम मालिक हो। आधार बना कर तुम्हें रोटी-रोजी का, मारा लात है निजता के अधिकार पर।
आधार तो मिला...
आधार के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ रही है। आखिरकार उसने विकास को अपने अहमियत का अहसास जो दिला दिया था। विकास अब उसके सामने पानी भर रहा था। आधार ने तो मन बना ही लिया था कि विकास ने अब जो अपनी जबान खोली तो वह सीधे उसे पागल खाने पहुंचा देगा। और ज्यादा चो-चपड़ किया तो गब्बर सिंह वाला टैक्स भी लगा देगा उसके ऊपर। विकास समझदार था। उसे समझ में आ गया था कि उसके पापा ने आधार को लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़ दिया है। आधार, जिसके पास विकास है उनके लिए भी और जिसके पास विकास नहीं है उनकी भी जरूरत बन गया है। आधार ने सवा सौ करोड़ जनता की नब्ज को पकड़ लिया है। वह अपने ख्यालों में उड़ रहा है और गा रहा है...आज कल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे, बोलो देखा है क्या तुमने मुझे कभी उड़ते हुए..................... तभी उसे रास्ते एक आदमी अपना आधार कार्ड लिए जाते हुए दिखा। अपने फैन के हाथों में अपनी फोटो देखकर उसे किसी सुपरस्टार से कम खुशी नहीं हुई। उसके होठों पर अपने आप ही यह गाना आ गया... सोना नहीं, चांदी नहीं आधार तो मिला, अरे आधार ले ले.....
Very nice