जुम्हूरियत का ढोल
जुम्हूरियत का ढोल
“हाथी के दांत खाने के नहीं दिखावे के होते हैं। राहुल, मोदी, कांग्रेस, भाजपा, प्रजातंत्र और ऐसी ही बाकी सभी चीजें हाथी के दांत हैं। हकीकत तो हम सब जानते हैं।”
हाथी के दांत
हाथी के दांत खाने के नहीं दिखावे के होते हैं। राहुल, मोदी, कांग्रेस, भाजपा, प्रजातंत्र और ऐसी ही बाकी सभी चीजें हाथी के दांत हैं। हकीकत तो हम सब जानते हैं। बैलट बॉक्स में परचा गिराने या इवीएम में बटन दबाने, इसके अलावा लोगों के हाथ में और कुछ है नहीं।
कांग्रेस सरकार में थी तब कितना विकास हुआ और किस गाँधी ने क्या किया ये सब जानते हैं। आजादी के बाद देश पर अधिकतर समय तक कांग्रेस की ही सरकार रही है। भावी कांग्रेस अध्यक्ष की देख-रेख में भी कांग्रेस ने दस साल शासन किया है। तब युवराज को कभी यह कहते नहीं सुना गया कि वे देश में निवेश करवाएंगे। भले ही अब नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ का मजाक उड़ाते हो। वे मोबाइल पॉकेट से निकाल कर लोगों को दिखाते हैं और बोलते हैं इसपर 'मेड इन इंडिया' का मार्क कहां हैं। किस उत्पाद पर क्या मार्क लगे हैं और क्या लगेंगे जनता तो यह देख ही लेगी।
दूसरी तरफ प्रचंड बहुमत से शासन में आए प्रधानमंत्री, कभी बुलेट ट्रैन ला रहे हैं तो कभी लोगों जेब से नोट निकलवा रहे हैं। बैंक खातों में कितने लुटे हुए पैसे आएं हैं सब जानते हैं। (अपने जेब के पैसे किसी तरह बच गए, यही गनीमत हैं)
पर परचा गिराने और बटन दबाने के अलावा कोई विकल्प है क्या हमारे पास? कम्बख्त, रोटी रोजी किसी तरह कमा लेते है, वही काफी है। आम जनता क्या चुनाव लड़ेगी क्या सिस्टम बदलेगी।
जहां तक सिस्टम की बात है, तो ये बदलेगा नहीं। जिसके पास पैसा है, दबदबा है, आज के युग में वही नेता है। नहीं तो दूसरा रास्ता अपनाओं, लोगों में अपना डर पैदा करो और दबंग बन जाओ। फिर तो चुनाव बाएं हाथ का खेल हो जाएगा। बड़ी-बड़ी पार्टियां थाल में फूल-माला और तिलक लेकर स्वागत करेंगी। अगर इससे भी बात नहीं बनती तो उठा लो आरक्षण, दलित और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे और आंदोलन करने बैठ जाओ। बस एक बार जनता को उनका हमदर्द होने का अहसास कराओ फिर तो समझो तुम्हारे पौ-बारह हो ही गए। अपने दम पर नहीं तो किसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन कर लो या फिर उनसे समर्थन ले लो। एक बार जहां संसद या विधानसभा में पहुंच गए, फिर तो बल्ले-बल्ले है जी। अपनी मर्जी से कानून बनाओ, अपनी स्किमें चलाओ और खूब माल बनाओ। जनता का क्या है, वह कल भी जनता थी, आज भी जनता है और कल भी जनता रहेगी।
ढोल
इस जनता के गले में एक ढोल डाल दिया गया है। जिसका नाम है जुम्हूरियत। हर पांच साल में एक बार ये ढोल बजा लेते है लोग। इसी में ये बेचारे खुश हो जाते है। लगता है देश इन्हीं के हवाले है। बदगुमानी में सत्तर साल तो कट गायें हैं। आगे भी समय कट ही जाएगा।
जुम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है की
जिस में बन्दों को सिर्फ गिना करते हैं, सुना नहीं करते
जुम्हूरियत इक तर्ज़-ए-तरन्नुम भी है,
की जिसे साल दर साल बजा लेते है
इक तर्ज़-ए-इबादत इन लबों पे आई है
जुम्हूरियत के नाम पर न जाने कितनी ठोकरें खाईं है
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