गुजरात चुनाव: पाटीदार, दलित और ओबीसी वोटर
गुजरात चुनाव: पाटीदार, दलित और ओबीसी वोटर
“गुजरात की सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक दल एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वहीं हार-जीत का समीकरण बनाने वाले पाटीदार, दलित और ओबीसी वोट बैंक इनके हाथों से निकलता दिख रहा है।”
भाजपा की राह को मुश्किल करते हुए कांग्रेस ने भी धर्म-धर्म करना शुरू कर दिया है। सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने पहुंचे राहुल गांधी जब धर्म के विवाद में उलझे तो कांग्रेस प्रवक्ताओं ने उन्हें जनेऊधारी हिन्दू बता दिया। वहीँ राहुल गांधी कहते फिर रहे हैं कि वे और उनका परिवार शिव भक्त है लेकिन वे धर्म की दलाली नहीं करते हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेता राहुल गांधी को धर्म और मंदिर जैसे मुद्दे पर घेरने में लगे हुए हैं। लेकिन सत्ताधारी पार्टी का मुकाबला अकेले राहुल गांधी से ही नहीं है। राज्य में तीन और नेता उभर चुकें है जो उसकी राह में बड़ी मुश्किल खड़ी करने का ताकत रखते हैं।
ऐसा कहा जा रहा कि पिछले दो सालों में उभरकर सामने आए पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर अपने-अपने समुदायों को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। ये तीनों इस बार गुजरात की राजनीति में अहम चेहरे बन गायें हैं। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए राज्य में पूर्ण बहुमत लाना संभव नहीं दिख रहा है।
हार्दिक पटेल
पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल और कांग्रेस राज्य में साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। आठ विधानसभा सीटो पर चुनाव लड़ने वाले हार्दिक पटेल को लगता है कि कांग्रेस पाटीदारों का आरक्षण दिलाएगी। हार्दिक पटेल ने सार्वजनिक तौर पर बीजेपी को आरक्षण न देने के लिए दोषी ठहराया है। अमित शाह को गुजरात गौरव यात्रा के दौरान पाटीदार युवाओं का विरोध भी झेलना पड़ा था।
साल 2015 में पटेल आरक्षण की मांग के बाद हार्दिक पटेल का नाम तेजी से उभरकर सामने आया था। हालांकि इस आंदोलन को दबाने की गुजरात सरकार की कोशिशों के बावजूद अभी तक यह मांग शांत नहीं हुई है। पाटीदार राज्य में 12 प्रतिशत का वोट शेयर रखते हैं। साथ ही अपनी आर्थिक ताकत के कारण भी वे स्थितियों को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। शुरुआत में इस आंदोलन का विरोध करने के बाद आज बीजेपी पाटीदारों का वोट पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है।
जिग्नेश मेवाणी
उना में गोरक्षकों द्वारा एक दलित की पीटाई के विरोध में हुए आंदोलन से उभरे दलित नेता जिग्नेश मेवाणी भी चुनावी दंगल में खड़े हैं। कांग्रेस उन्हें अपना समर्थन दे रही है। उन्होंने राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश राज्य में दलितों पर हो रहे हमलों के लिए गुजरात सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। लगातार दलितों पर हुए हमले की ख़बरों के बाद बीजेपी की छवि का पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक भी है।
'आजादी कूच आंदोलन' में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे हुए जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी। जिग्नेश का कहना है, ''राज्य में दलित पर हो रहे हमलों को रोकने और उनकी स्थिति में सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा है और इस सरकार के रहते उनका भला नहीं हो सकता।'' वे आगे कहते हैं कि, ''इस बार बीजेपी को हर कीमत पर हराया जाना चाहिए।'' राज्य में दलितों का वोट करीब सात प्रतिशत है। राज्य की कुल आबादी लगभग 6 करोड़ 38 लाख है, जिनमें दलित 35 लाख 92 हजार के करीब हैं। चुनाव जीतने के लिए हर एक वोट अहम होता है, ऐसे में जिग्नेश भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं।
अल्पेश ठाकुर
ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के संयोजक अल्पेश ठाकुर ने अलग-अलग मंचों से गुजरात की हालत ठीक नहीं होने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि भाजपा की राज्य में 150 सीटे आ गई तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे। उनका मानना है कि भाजापा का विकास सिर्फ दिखावा है और गुजरात में लाखों लोग बेरोजगार हैं। राज्य में ओबीसी का वोट 40 प्रतिशत है। अगर इस वोट बैंक में सेंध लग जाती है तो भाजपा के हाथों से सत्ता जा सकती है।
कैसे उभरे ये तीनों नेता
इन तीनों नेताओं के उभरने के पीछे बहुत हद तक नरेन्द्र मोदी का ही हाथ है। जब वे राज्य के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने युवाओं को बड़े-बड़े सपने दिखाएं थे। उन्होंने वाईब्रेट गुजरात की बात कही थी। बहुत बड़े-बड़े समिट होने लगे जिनमें बड़े स्तर पर निवेश होने और रोजगार के अवसर खुलने की बातें कही गईं। लोगों को सुखद भविष्य के सपने दिखाए गए। उन्होंने राज्य में निजीकरण को बढ़ावा दिया था। जिसके तहत राज्य में बहुत सारे निजी शैक्षणिक संस्थान खुल गए।
युवाओं ने उन्हीं निजी संस्थानों में महंगी फीस देकर पढ़ाई की। लेकिन जब वे बाजार में आए तो उन्हें नौकरी ही नहीं मिली। किसी को नौकरी मिली भी तो 5-6 हजार की।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि सरकार की कथनी और करनी के अंतर की वजह से युवाओं में निराशा और गुस्सा भर गया। पाटीदार एक संपन्न वर्ग है। जब वे सड़क पर उतरे हैं तो दूसरों का क्या हाल होगा। गुजरात में उत्पन्न हुई चुनौतियों का असर दिखने लगा है। तभी तो नरेन्द्र मोदी अपने सरकार के काम पर नहीं बल्कि गरीबी, मंदिर और चाय बेचने के मुद्दे पर अपनी रैलियों में बात करते दिख रहे हैं। 22 सालों के विकास का कोई अता-पता नहीं है। राज्य चुनाव में गरीबी, धर्म और आरक्षण जैसे पुराने मुद्दे ही है।
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