गुजरात में भाजपा की चुनौतियां
गुजरात में भाजपा की चुनौतियां
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 22 सालों से शासन कर रही है। ऐसे में उसे सत्ता विरोधी लहरों का समना करना पड़ सकता है। साथ भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाने वाली नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय है। बीते सालों में वे गुजरात पर उतना ध्यान नहीं दे पाए हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदीबेन मुख्यमंत्री बनी लेकिन उनके शासनकाल में हुए पाटीदार आंदोलन ने यह जाहिर कर दिया की सरकार विरोधी लहरों को शांत करने की क्षमता नहीं है। फिर प्रदेश की कमान भाजपा ने विजय रुपानी के हाथों में दे दी। लेकिन लोगों का मानना है कि विजय रुपानी के नेतृत्व में नरेन्द्र मोदी वाला आकर्षण नहीं है।
दिसंबर में होने वाला गुजरात चुनाव राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाला होगा। इसमें 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को तलाश की जाएगी। राहुल गांधी कांग्रस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी होने वाली है, ऐसे में अगर गुजरात चुनाव में उनकी रणनीति सफल होती है तो वे विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बन सकते हैं। वहीं नरेन्द्र मोदी के लिए यह चुनाव उनके बतौर प्रधानमंत्री दूसरे कार्यकाल की गारंटी होगी।
गुजरात चुनाव प्रचार में कांग्रेस युवराज नरेन्द्र मोदी के दाव अजमा रहे हैं। अपने भाषणों में सरकार के खिलाफ पुराने वाले नरेन्द्र मोदी की आक्रमकता दिखा रहे हैं। गुजरात छोड़ दिल्ली आने के बाद क्या गुजरात में मोदीशाही वैसी ही रह गई है जैसी पांच साल पहले थी? शायद नहीं। इस साल राज्य सभा सांसद बनने से पहले अमित शाह 1997 से 2012 के बीच विधायक रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद गुजरात में पहली बार विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। अमित शाह ने इस चुनाव में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है लेकिन तथ्य ये है कि पिछले तीन विधान सभा चुनाव से भाजपा की सीटें घटती ही आ रही हैं। साल 2002 में भाजपा ने 127 सीटें, साल 2007 में 117 सीटें और साल 2012 में 116 सीटें जीती थीं। मोदीशाही हालांकि गुजरात चुनाव में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है। हम उन मुद्दों पर एक नजर ड़ालते हैं जो राज्य में भाजपा के लिए चुनौतियां लेकर खड़ी हुई हैं।
नरेंद्र मोदी की गैर-मौजूदगी
प्रदेश में अपने दम पर पहली बार भाजपा ने 1995 में जीत हासिल की थी। तब नरेंद्र मोदी करीब 45 साल के थे। भाजपा की इस बड़ी जीत में युवा नेता मोदी की चुनावी रणनीति की अहम भूमिका रही थी। पार्टी ने उन्हें उसी साल केंद्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका सौंप दी थी। फिर भी गुजरात पर उनका दबदबा बना रहा। भाजपा ने 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया। मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद साल 2002 में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। उसके बाद साल 2007 और 2012 के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में जीत हासिल की।
अमित शाह पहली बार 1997 में गुजरात से विधायक बने थे। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित जीत हासिल की। इस जीत के मास्टरमाइंड अमित शाह थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी जगह आनंदीबेन पटेल को पार्टी ने राज्य का सीएम बनाया लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनकी जगह विजय रूपानी को देनी पड़ी। ऐसे में भाजपा ऊपर से चाहे जो कहे मोदी-शाह की गैर-मौजूदगी का गुजरात की राजनीति पर असर पड़ना तय है।
बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कार्यकाल (2001 से 2012) में गुजरात मुख्यतः गोधरा ट्रेन कांड और उसके बाद हुए दंगों को लेकर ही विवादों में रहा था। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वर्ष 2014 से अब तक गुजरात मुस्लिम मुद्दों से ज्यादा दलितों और पाटीदारों के आंदोलन के कारण चर्चा में रहा। उना में दलितों की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद राज्य में दलितों ने भाजपा सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किए। उना दलित कांड की गूंज दूसरे राज्यों में भी सुनाई दी। गुजरात के दलित पिछले दो दशकों से बड़े पैमाने पर भाजपा को वोट देते आ रहे थे। लेकिन इस बार भाजपा को दलित वोटों की चिंता सता रही है। शायद यही वजह है कि अमित शाह ने गुजरात के दलित भाजपा कार्यकर्ता के घर खाना खाकर अपनी अखिल भारतीय यात्रा की शुरुआत की थी।
गुजरात का पाटीदार (पटेल) समुदाय पिछले दो दशकों से भाजपा का वोटर माना जाता रहा है। लेकिन हार्दिक पटेल के नेतृत्व में साल 2015 में पाटीदारों ने आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। हार्दिक पटेल की रैली में लाखों लोग शामिल होने लगे। इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया था। आंदोलन इतना उग्र हो गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजराती में गुजरातवासियों से शांति-व्यवस्था बनाए रखने की अपील करनी पड़ी। राज्य में भाजपा सरकार के खिलाफ हुए आंदोलन से इस चर्चा को बल मिला की भाजपा के वफादार वोटर माने जाने वाले पटेल उससे दूर भी जा सकते हैं। हार्दिक पटेल ने खूले तौर पर कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। यदि मुसलमान, दलित और पटेल वोटर भाजापा के खिलाफ हो गए तो पार्टी को चुनाव में बड़ी मुश्किल हो सकती है।
कठघरे में विकास
पिछले एक दशक से गुजरात मॉडल का भाजपा पूरे देश में उदाहरण के तौर पर पेश करती रही है। साल 2014 के लोक सभा चुनाव से पहले भी भाजपा और तब उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुजरात को मॉडल स्टेट बताकर पूरे देश को वैसा ही बनाने का वादा करते रहे। लेकिन इस बार विधान सभा चुनाव से ठीक पहले सोशल मीडिया पर “विकास पागल हो गया है” वायरल हो गया। पार्टी पर गुजराती मूल के कारोबारियों को “विशेष लाभ” पहुंचाने के आरोप इन तीन सालों में लगते रहे हैं। माना जा रहा है कि जीएसटी से भी गुजरात का व्यापारी वर्ग नाराज है इसलिए पिछले हफ्ते भाजपा ने इसमें संशोधन भी किए। जाहिर है विकास के “गुजरात मॉडल” पर उठ रहे सवाल का असर गुजरात विधान सभा चुनाव पड़ सकता है।
आम आदमी पार्टी की भूमिका
गुजरात चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी (आप) को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आप राज्य में पहली बार चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने गोपाल राय को प्रदेश प्रभारी बनाया है। इस साल हुए पंजाब विधान सभा चुनाव में आप ने 20 सीटों पर जीत हासिल की। आप को पंजाब में सत्ता से बेदखल हुई अकाली दल से भी ज्यादा सीटें हासिल हुईं। हालांकि पार्टी को गोवा चुनाव में अपेक्षित नतीजे नहीं मिले लेकिन भाजपा और कांग्रेस इस बात को नहीं भूलें होगे कि कैसे इसने दिल्ली में इन्हें धूल चटाई थी।
Kya Vikas, Gujarat has been handed over to the Ambanis and Adanis. People of Gujarat will teach BJP a lesson this time and allow AAP and Kejriwal to serve them.