एनएसई को-लोकेशन घोटाला
एनएसई को-लोकेशन घोटाला
“यूपीए कार्यकाल में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और नौकरशाह के पी कृष्णन की बदौलत अजय शाह को एनआईपीएफपी में एक करोड़ रुपए सालाना का एक प्रोजेक्ट दस सालों के लिए दिया गया था। एनएसई के को-लेकेशन घोटाले में अजय शाह आरोपी हैं। यह जांच का विषय़ हो सकता है कि क्या इस घोटाले की जानकारी पी चिदंबरम को थी। कहीं एक बार फिर नेता और नौकरशाही की जुगलबंदी तो घोटाले का कारण नहीं बनी है।”
आयकर विभाग (आईटी विभाग) और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में हुए हाई फ्रिक्वेंसी ट्रेड घोटाले की जांच कर रही है। सेबी ने एनएसई और इसके 14 वर्तमान और पुराने अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर इस घोटाले में उनकी संलिप्ता पर जवाब मांगा था। एनएसई ने अपनी तरफ से भी इसकी जांच अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाय) एंड इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस कंस्लटेंसी द्वारा करवा रही थी। एनएसई ने बीते 14 नवंबर को ईवाय द्वारा तैयार किए गए फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट को सेबी को सौंपा है। सेबी को रिपोर्ट मिलने के बाद आयकर विभाग ने देशव्यापी छापेमारी की। एनएसई के पुराने और वर्तमान अधिकारियों समेत इस घोटाले में संलिप्त ब्रोकरों के घर से आयकर विभाग ने सोफा और तकिए में छुपा कर रखे गए 11 करोड़ रुपए जब्त किए हैं। इसके अलावे उनके लैपटॉप, स्टोरेज डिवाईस और कॉन्फिडेनशियल पेपर भी जब्त किए।
को-लोकेशन पचास हजार करोड़ का
आईटी विभाग के अधिकारियों ने अनुमान से बताया है कि एनएसई हाई फ्रिक्वेंसी ट्रेड (एचएफटी) घोटाला करीब पचास हजार करोड़ (50,00,00,00,00,000) रुपए का हो सकता है। इसे को-लोकेशन घोटाला भी कहा जाता है। एनएसई की अंदरखाने से यह बात 2015 में बाहर आई। एनएसआई ने 2010 में को-लोकेशन नाम की एक सुविधा शुरू की थी। जिसकी जानकारी उसने सेबी को नहीं दी थी और एक व्हिसिलव्लोअर ने इस बात को लीक कर दिया कि सेबी से मंजूरी लिए बिना को-लोकेशन की सुविधा कुछ चुनिंदा ब्रोकरों को ट्रेडिंग करने के लिए दी जा रही है। को-लोकेशन सुविधा के अंतर्गत ये चुनिंदा ब्रोकर अन्य निवेशकों की तुलना में कुछ क्षण की तेज रफ्तार से एक्सचेंज की डेटा प्राप्त कर सकते थे। इस तरह से बाजार को चंद ब्रोकरों के हवाले कर लाखों निवेशकों के साथ धोखा-धड़ी की गई।
को-लोकेशन घोटाले के आरोपी
इस घोटाले का षड्यंत्र रचने वालों में तत्कालीन प्रबंध अधिकारी (एमडी) और कार्यकारी निदेशक (सीईओ) रवि नारायण, उनकी जुनियर चित्रा रामाकृष्णा, ट्रेड प्रबंधक सुप्रभात लाला और ओपीजी सिक्योरिटीज के प्रमोटर संजय गुप्ता जैसे अधिकारियों का नाम है। जांच के घेरे में आने के बाद नारायण ने इस साल जून में इस्तीफा दे दिया। जांच आगे बढ़ी तो को-लोकेशन घोटाले के लिए विशेष रुप से तैयार किया गया एलोग्रिथम प्रोग्राम सामने आया। इस जटिल प्रोग्राम को तैयार करने वाले वास्तुकार अजय शाह थे। तभी से वे आयकर विभाग के जांच के घेरे में आ गए।
रवि नारायण, चित्रा रामाकृष्णा, सुप्रभात लाला, संजय गुप्ता और अजय शाह ने मिलकर हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेड (एचएफटी) के तहत अपने करीबी ब्रोकरों और ट्रेडिंग कंपनियों को फायदा पहुंचाने की योजना बनाई। एचएफटी से जुड़ी कंपनियों ने इनके साथ मिलकर पांच सालों (2010-2015) तक ट्रेडिंग कर गलत तरीके से मार्केट से धन जुटाए।
अजय शाह, उनकी पत्नी और साली को सबसे अधिक फायदा पहुंचा
पिछले दो सालों से चल रही इस जांच के दौरान पड़े छापों में आईटी विभाग के सामने हर बार अगर कोई नाम आया है तो वह है ‘अजय शाह’ का नाम। अजय शाह राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के सीनियर फेलो हैं। इस खबर से दिल्ली के सत्ता गलियारों में गर्मा-गरमी का माहौल उत्पन्न होने की भी संभावना है। क्योंकि अजय शाह पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के करीबी माने जाते हैं। साथ उनके संबंध वर्तमान स्किल डेवलपमेंट और एंट्रेप्रेन्योरशिप मंत्रालय के सचिव के पी कृष्णन से भी काफी अच्छे हैं। यूपीए कार्यकाल में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और नौकरशाह के पी कृष्णन की बदौलत अजय शाह को एनआईपीएफपी में एक करोड़ रुपए का सालाना प्रोजेक्ट दस सालों के लिए दिया गया था। एनएसई के को-लेकेशन घोटाले में अजय शाह आरोपी हैं। यह जांच का विषय़ हो सकता है कि क्या इस घोटाले की जानकारी पी चिदंबरम को थी? क्या वे जानते थे कि शेयर मार्केट में कितनी बड़ी जालसाजी हो रही है? कहीं एक बार फिर नेता और नौकरशाही की जुगलबंदी तो घोटाले का कारण नहीं बनी है।
आईटी अधिकारियों ने अपनी जांच में पाया है कि अजय शाह की पत्नी सुसैन थॉमस और साली सुनिथा थॉमस जो कि ट्रेड प्रबंधक सुप्रभात लाला की पत्नी है, की ट्रेडिंग कंपनी को एचएफटी के तहत सबसे अधिक फायदा पहुंचा है। सुनिथा थॉमस इनफोटेक सॉल्युशन और चाणक्या कंपनी को प्रमोट करती हैं। इसमें ओपीजी सेक्युरीटिज, अल्फा ग्रेप, ओमनीज टेक्नोलॉजी जैसी अन्य ट्रेडिंग और ब्रोकरेज कंपनिया शामिल है। ओमनीज शुरूआत में एनएसई की ब्रोकरिंग फर्म थी। इसके बोर्ड सदस्यों में रामाकृष्णा शामिल थी। इसमें एनएसई का 26 प्रतिशत स्टेक था।
टर्नओवर का बहुत बड़ा हिस्सा रॉयल्टी में
एनएसई की तरफ से अजय शाह और उनकी पत्नी को एलोग्रिथम डिजाइन के लिए हर साल एक मोटी रकम रॉयल्टी के तौर पर दी जाती है। आईटी विभाग के अनुसार एनएसई पर ट्रेडिंग करने और इसके आमदनी का कुछ फीसदी हिस्सा बतौर रॉयल्टी तय है। आईटी विभाग का कहना हैं कि यह मानक उद्योग के मानदंडों का उल्लंघन है। किसी भी बाजार सूचकांक के लिए डिजाइनरों और शोधकर्ताओं को एक बार ही भुगतान किया जाता है। शाह ओपीजी सेक्यूरीटिज, अल्फा ग्रेप और ओमनीज के प्रोफिट में भी हिस्सेदार हैं। आईटी विभाग की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि को-लोकेशन सुविधा का उपयोग कर अकेले ओपीजी सिक्योरिटटीज ने 6,000 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। आई-टी रिपोर्टों में नामित अन्य 15 संस्थाओं के विवरण की जांच अभी चल रही है। मार्केट पंडितों का कहना है कि जबतक एफआईआई या एफपीआई के ऑर्डर बुक की विस्तृत में जांच नहीं की जाती तबतक यह खुलासा नहीं हो पाएगा कि कितना अवैध वास्तविक लाभ इन कंपनियों को हुआ है।
आयकर अधिकारियों ने ओपीजी, अल्फा ग्रेप और अन्य आरोपियों के इस अवैध धन को विदेशों में जमा कराने की लिस्ट जुटा ली है। उनके पास टैक्स हेवेन्स कहे जानी वाली देशों साइप्रस, ब्रिटिश वर्जिन आईसलैंड, मॉरिशस, हॉगकॉंग और अन्य देश जहां इन कंपनिय़ों की पहुंच हो सकती है, वहां तक जांच-पड़ताल करने के लिए उनके एफआईआई आदि प्राप्त कर लिए हैं।
शेयर मार्केट की इस बड़ी धोखा-धड़ी में शामिल लोग इस विषय में किसी भी तरह की बात-चीत करने से बच रहे हैं। मामले की अभी जांच चल रही है। अजय शाह के बारे में यह भी चर्चा है कि उनके कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से काफी नजदीकी संबंध हैं। जानकारी मिली है कि यूपीए कार्यकाल में पी. चिदंबरम और नौकरशाह के पी कृष्णन की बदौलत अजय शाह को एनआईपीएफपी में एक करोड़ रुपए सालाना का एक प्रोजेक्ट मिला है। जो दस सालों तक चलता रहेगा। यह सब जानते हैं कि नेता और नौकरशाही की जुगलबंदी के कारण ही देश में बड़े-बड़े घोटाले हुए हैं। आमलोगों का हक मार कर ये चंद लोग अपनी तिजोरी भरते रहते हैं। जांच एजेंसियां जांच करती रहती है। उनके नतीजे आने में इतना समय लग जाता है कि आरोपियों को खुद का बचाव करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। यहीं वजह है कि इन लुटेरों में कोई खौफ नहीं होता और जब भी उन्हें मौका मिलता है तो पूरे बाजार को ही लूट लेते हैं।
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