दिल्ली की धुंध : तड़पाए, जलाए और बेबस कर जाए
दिल्ली की धुंध : तड़पाए, जलाए और बेबस कर जाए
‘ये धुआं, धुआं सा रहने दो, मुझे दिल की बात कहने दो’, दिल्ली के धुंध को देखकर ये पंक्तियां नहीं लिख रही हूं। बल्कि जिस तरह का रवैया हमारी चुनी हुई सरकारों ने अपनाया है उसे देखते हुए इस गाने की ये पंक्तियां ध्यान में आ गई। दिल्ली में धुंध की यह चादर अचानक से नहीं छा गई है। यह कोई प्राकृतिक आपदा भी नहीं है जिससे निपटने का समय सरकार को नहीं मिला। दिल्ली सरकार, पंजाब सरकार और यूपी सरकार यहां तक कि केंद्र सरकार इन सब की लापरवाही की सजा दिल्ली की जनता भुगत रही है। जनता के हितों के लिए राजनीतिक दलों से अपेक्षा की जाती है कि वे किसी मुद्दे पर एकजुट होंगे लेकिन हमारेयहां अकसर ऐसे मौकों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर चुटकी लेना ही जानते हैं। सरकार और उनके मंत्रियों के लिए तो बस यह बयानबाजी का मौका है। कौन किसके ऊपर कितने आरोप लगा दे। इसमें ही इनकी जीत है।
दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर
दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्य जहरीली धुंध और प्रदूषण की चपेट में है। एअर क्वालिटी इंडेक्स द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 12 नवंबर को (रविवार) दिल्ली के मंदिर मार्ग पर पीएम (पार्टीकुलेट मैटर) का स्तर 523, आनंद विहार पर 510, पंजाबी बाग में 743 और शादीपुर में 420 रहा। वहीं, दिल्ली के साथ गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद में प्रदूषण का स्तर दिल्ली के आसपास ही है।
ऑड-इवन फॉर्मूले का पेंच
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार आज से (13 नवंबर) राज्य में ऑड-इवेन फॉर्मूला लागू करने वाली थी जिसपर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कुछ सवाल पूछ लिए थे। ट्रिब्यूनल ने केजरीवाल सरकार से पूछा था कि पिछले दो साल से यह फॉर्मूला लागू किया जा रहा, इसका क्या फायदा हुआ? दूसरा सवाल था कि इससे महिला चालकों को छूट क्यों दी जाती है, क्या उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते हैं? तीसरा सवाल था कि दो-पहिया वाहनों को किस आधार पर इस नियम से बाहर रखा जा रहा है जबकि सबसे ज्यादा प्रदूषण उससे ही होता है। केजरीवाल सरकार के पास ट्रिब्यूनल के सवालों के जवाब नहीं थे। ऐसे में उसे अपने इस फैसले को वापस लेना पड़ा। हालांकि दिल्ली सरकार ने आज एक बार फिर से ट्रिब्यूनल के समक्ष याचिका दायर कि है जिसमें मांग किया है कि महिलाओं और दो-पहिया वाहनों को ऑड-इवेन फॉर्मूले से बाहर रखने की इजाजत दी जाए। ट्रिब्यूनल इसकी सुनवाई कल करेगा।
दिल्ली के प्रदूषण की पीछे कौन
कहा जा रहा है पंजाब में किसानों द्वारा पलाड़ी जलाने से दिल्ली धुएं के आगोश में समा गया है। लेकिन यहीं एक वजह नहीं है। दिल्ली में अमूमन साल के 364 दिन प्रदूषण रहता है। और ऐसा कहना केन्द्रीय मंत्री और शोध रिपोर्टों का है। दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों के धुएं की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। जबकि पेटकोक (रिफाइनरी में सबसे अंत में निकलने वाला पेट्रोलियम उत्पाद) एवं अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी 16 फीसदी है। इसमें सबसे ज्यादा 23 फीसदी हिस्सेदारी निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न धूल और मिट्टी के कणों की है। इसके अलावा 20 फीसदी माध्यमिक कणों की है जो वायुमंडल में उत्सर्जित कणों की प्रतिक्रिया से बनते हैं। 12 फीसदी जैव ईंधन की हिस्सेदारी है जिसके लिये पड़ोसी राज्य जिम्मेवार हैं जो पलाड़ी और गोबर आदि के जलने से होती है। इसके अलावा तकरीबन 7 फीसदी औद्योगिक उत्सर्जन और 5 फीसदी समुद्री नमक की हिस्सेदारी है। इसके अलावा दिल्ली में रोजाना निकलने वाला तकरीबन 9 हजार मीट्रिक टन कूड़ा-कचरा भी दिल्ली की आबोहवा को विषाक्त बनाने में कम दोषी नहीं हैं। एक समस्या तो इनके रख-रखाव की ही है जिसमें दिल्ली के तीनों नियमों की नाकामी जगजाहिर ही है। ऐसे खुले में कचरा सड़ने से कई स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को निमंत्रण मिलता है। कूड़ा सड़ने से हानिकारक गैस जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, एसिटलीन, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड निकलती हैं। अस्थमा जैसी फेफड़े और सांस की बीमारियों के लिए इन्हीं गैसों को जिम्मेवार माना जाता हैं।
यहां बात सियासत की नहीं है, आम जिंदगियों की है। इसमें लापरवाही का मतलब है कि सरकार जनता को मौत के हवाले कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में हर साल 10000 से 30000 लोगों की मौत हानिकारक गैसों से होने वाली बीमारियों की वजह से हो रही है। डब्ल्यूएचओ के साथ-साथ पर्यावरण से जुड़े कई संस्थानों ने समय-समय पर बढ़ते प्रदूषण को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है एवं सुझाव भी दिए हैं। यह समय आरोप-प्रत्यारोप को दरकिनार कर मिलकर ठोस कदम उठाने का है। ऑड-इवेन जैसे फॉर्मूलें एक-दो हफ्ते या महीने सरकार चला सकती है लेकिन इसकी जगह अगर वह सालों भर चलने वाली व्यवस्था करें तो ज्यादा हितकर होगा।
Suggested articles: The Wire, Business Standard, India.com
Jabse modi nam ka gubbara aya hai ar allergy babu aye hai ek pm ke room me ar ek CM ke room Bas tabse delhi v gubbara ar asthma Bana hua hai