गुजरात चुनाव: राहुल बाबा के भरोसे कांग्रेस
गुजरात चुनाव: राहुल बाबा के भरोसे कांग्रेस
“कांग्रेस, बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों की तरह, एक राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि एक प्रोपरायटरशीप है। इसमें व्यक्ति विशेष का फैसला सर्वसम्मत होता है।”
राहुल गांधी को जल्द ही कांग्रेस अध्यक्ष की उपाधि मिलने वाली है। कांग्रेस वर्किंग कमिटी का कहना है कि उन्हें सर्वसम्मति से इस पद के लिए चुना गया है। भले ही शेहजाद पूनावाला कुछ भी कहें। यह बात करीब करीब हर कोई जानता है कि वे इस रेस के अकेले घोड़े हैं और उनके खिलाफ कोई दूसरा खड़ा नहीं होगा। उन्हें कांग्रेस ने अपना उत्तराधिकारी पहले से ही मान रखा है। इस विषय पर चर्चा करने से किसी को कुछ हासिल नहीं होने वाला है। बहरहाल, अगर किसी विषय पर चर्चा करनी ही है तो होनी चाहिए कि क्या राहुल गांधी जन-नेता बन पाएंगे। देश उनमें अपना भावी प्रधानमंत्री देख सकता है या नहीं। इसका जवाब देने के लिए राहुल गांधी को गुजरात चुनाव जैसा सुनहरा मौका फिर शायद कभी नहीं मिलेगा। यह चुनाव उनके नेतृत्व की आजमाइश होगी।
पहली बार हिन्दुत्व के मुद्दे को आजमाती कांग्रेस
कांग्रेस जानती है कि गुजरात चुनावों में जीत हासिल करना उसके लिए करो या मरो वाली परिस्थिति है। इस लिए कांग्रेस वहां फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। अपनी खोई जमीन को पाने के लिए के उसे भाजपा को हराना ही होगा। भाजपा को हराना है तो हिन्दू वोटों को अपने तरफ लाना होगा क्योंकि गुजरात में सबसे ज्यादा आबादी हिन्दुओं की है। इसलिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी तरफ से हिन्दू वोट पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अब तक वे 20 से ज्यादा बार मंदिरों में दर्शन के लिए जा चुके हैं। अपनी हर रैली से पहले मंदिर में जाकर माथा टेक रहे हैं।
कांग्रेस ने भी भाजापा की तरह हिन्दू धर्म और मंदिर का राग अलापना शुरू कर दिया है। गुजरात में 90 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है और कांग्रेस पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर है। यही वजह हे कि पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल, दलित आंदोलन के नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी आंदोलन के नेता अल्पेश ठाकुर को वह अपने साथ लेकर आगे बढ़ रही है। जब जिग्नेश मेवाणी ने वडगाम विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की तो कांग्रेस के वर्तमान विधायक मणिभाई वाघेला ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। वहीं अल्पेश ठाकुर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं तो हार्दिक पटेल ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है।
बदली है प्रचार की रणनीति
सोशल मीडिया पर भी राहुल गांधी ने अपनी रणनीति बदली है। उन्होंने अपनी डिजिटल टीम में कई बदलाव किए हैं। दिव्या स्पंदना उर्फ राम्या को उन्होंने अपने डिजिटल टीम का प्रधान बनाया है। उनकी नई टीम सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत हमलों से बच रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में सोनिया गांधी द्वारा नरेनद्र मोदी पर किए गए व्यक्तिगत हमले से कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। तब अपनी चुनावी रैली में सोनिया गांधी ने नरेन्द्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। इस बार चुनावी रैलियों से लेकर सोशल मीडिया पर कहीं कोई व्यक्तिगत हमले नहीं किए जा रहे हैं। चुनाव प्रचार में नरेन्द्र मोदी सरकार के काम-काज को निशाना बनाकर कैंपेन चलाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस द्वारा 'विकास पागल हो गया' जैसे कैंपेन चलाए गए। राहुल गांधी अपनी रैलियों के दौरान भी सरकार के फैसलों को लेकर ही भाजपा को घेर रहे हैं। जैसे जीएसटी टैक्स को उन्होंने 'गब्बर सिंह टैक्स' के नाम देकर केन्द्र सरकार पर वार किया। इसके अलावे नोटबंदी समेत केन्द्र सरकार के अन्य कई फैसलों पर उन्होंने सवाल खड़े किए हैं। राहुल गांधी अपने ट्वीटर हैंडल से गुजरात से जुड़े मुद्दों पर रोज एक सवाल नरेन्द्र मोदी से पूछ रहे हैं। उन्होंने अभी तक चार सवाल पूछ लिए हैं। गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने रोजगार, मकान और संसद के शीतकालीन सत्र में देरी जैसी प्रमुख मुद्दे उठाकर भाजपा की राज्य सरकार और केन्द्र दोनों को घेरने की कोशिश की है। इतना ही नहीं अपनी रैलियों में वे राफेल सौदा और अमित शाह के बेटे जय शाह को हुए मुनाफे जैसे मुद्दों पर भी प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं।
जमीन से जुड़ने की कोशिश
राहुल गांधी सीधे तौर पर यहां जनता से जुड़ना चाह रहे हैं। गुजरात दौरे के दौरान राहुल गांधी कई बार ऐसे फैसले लिए हैं जिससे पार्टी के नेता ही नहीं उनकी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी भी दंग रह गए हैं। जैसे भरूच दौरे के दौरान जब एक लड़की उनकी गाड़ी के पास पहुंची तो उन्होंने उस लड़की को गाड़ी में ऊपर आने दिया। इसके बाद लड़की ने राहुल को बुके दिया और सेल्फी भी ली। इतना ही नहीं राहुल अपने दौरे के दौरान कई बार मंदिर जाने और पूजा करने का फैसला भी लिया। इसके अलावा उन्होंने दलित समुदाय द्वारा बनाए गए विशाल तिरंगे को भी उनके हाथों से लिया जिसे अगस्त महीने में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अधिकारियों ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
राहुल गांधी के नेतृत्व में अगर कांग्रेस गुजरात चुनाव जीत जाती है तो यह राहुल गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। फिर उनके कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर भी जिन लोगों को आपत्ति है उन्हें जवाब मिल जाएगा कि राहुल में नेतृत्व करने की क्षमता है। वे अपने दम पर कांग्रेस की खोई हुई जमीन को वापस लौटा कर ला सकते हैं। गुजरात चुनाव ने कम से कम इतना साबित तो कर ही दिया है। भाजपा को राहुल गांधी से टक्कर लेने के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ रही है। ऐसे में अगर चुनाव के नतीजे राहुल के पक्ष में आ जाते है तो फिर उन्हें जन-नेता बनने से कोई नहीं रोक सकता। कांग्रेस की गुजरात चुनाव में जीत नरेन्द्र मोदी के लिए 2019 की राह में बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकती है। वैसे भी कांग्रेस तो राहुल भरोसे ही हैं। अब देखना है कि गुजरात की कसौटी पर राहुल खरे उतरते हैं या नहीं।
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